उमैर नज़मी की बेहतरीन चुनिंदा 20+ शायरी व ग़ज़लें Best 20+ shayari & ghazals of umair nazmi, umair nazmi shayari in hindi, umair nazmi shayari, umair nazmi new poetry, umair nazmi naat, umair nazmi poetry pdf, umair nazmi urdu shayari, umair nazmi ghazal, umair nazmi ghazal in hindi, umair nazmi ghazal collection, best of umair nazmi ghazal and shayari

बिछड़ गए तो यह दिल उम्र भर लगेगा नहीं

यह लाइन आते ही हमें याद आती है

एक मशहूर शायर उमेर नजमी साहब उमैर नजमी

अपने आप में एक बहुत ही कमाल की हस्ती हैं

उनका हर अल्फाज अल्फाज नहीं एक ग़ज़ल सा है

उनके ख्यालों को जितना पढ़ा जाए उतना ही कम है

आज की युवा पीढ़ी उनसे सबसे ज्यादा जुड़ी है

उनके अल्फाजों के कारण उन्होंने बहुत गहरी बातें

बहुत ही आसान लफ्जों के अंदर बयान की है

उनकी एक शायरी बिछड़ गए तो यह दिल उम्र भर लगेगा नहीं

और बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे गैर हो

और निकाल लाया हूं पिंजरे से एक परिंदा

यह ग़ज़ल ने उनकी लाजवाब है

उम्दा है बेमिसाल है या यूं कहें कि बा कमाल है



तो दोस्तों आ गया हूं एक बार फिर

आपके लिए एक और मशहूर शायर का ब्लॉग

लेकर ब्लॉग में हम बात करेंगे

मशहूर शायर उमैर नजमी साहब की

बेहतरीन चुनिंदा गजलों और शायरियों के बारे में

अगर आप blog पर पहली बार आए हैं तो

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Umair Najmi Ghazal Collection: बहुत सारे लोगों को

ग़ज़ल (Ghazal) पढ़ने, लिखने या सुनने का बहुत शौक होता है.

कई बार ऐसे हालातों से हम गुजर रहे होते हैं

कि अपनी भावनाएं बयान नहीं कर पाते.

ऐसे में हम अक्सर उनके ही ईर्द-गिर्द घूमने वाले

शब्दों से बनी शायरियां, नज़्म और शेर ढूंढते हैं

ताकि हमारे मन को थोड़ी देर के लिए सुकून और दर्द

से राहत मिल सके.

‘निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है’






❤❤❤मुझे पहले पहल लगता था ज़ाती मसअला है
मैं फिर समझा मोहब्बत कायनाती मसअला है 

Mujhe pahle pahal lagta tha ye jati masala hai
Mai fir samjha mohobbat kaynaati masla hai




❤❤❤एक तारीख़-ए-मुकर्रर पे तू हर माह मिले 
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले 

Ek tarikh e mukrar pe tu har maah mile
Jaise daftar me kisi shakhs ko tankhwah mile


❤❤❤मिलते हैं मुश्किलों से यहां हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो
Milte hai mushkilo se yahan ham khyal log
Tere tamam chahne walo ki khair ho



❤❤❤कमरे में सिगरेटों का धुआं और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

Kamre me cigerato ka dhua aur teri mahak
Jaise shadid dhundh me bago ki sair ho



❤❤❤ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इसको ज़िंदा निकालना है 

Ye rooh barso se dafan hai tum madad karoge
Badan ke malbe se isko jinda nikalna hai







❤❤❤निकाल लाया हूं एक पिंजरे से एक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है 


Nikal laya hu ek pinjare se ek parinda
Ab is parine ke dil se pinjra nikalna hai




❤❤❤मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली

Mai ne jo raah li dushwar jyada nikli
Mere andaze se har baar jyada nikli



❤❤❤तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से
मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो

Tamam din is dua me kat ta hai kuch dino se
Mai jaun kamre me to udasi nikal gayi



❤❤❤मैं बरश छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बा'द
मुझ से कुछ बन नहीं पाया तिरी तस्वीर के बा'द 

Mai barsh chhod chuka aakhri tasveer ke baad
Mujh se kuch ban nahi paya teri tasveer ke baad



❤❤❤ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है
मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है

Ye tees barso se kuch baras pichhe chal rahi hai
Mujhe ghadi ka khrab purza nikalna hai




❤❤❤बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक मुझे
 सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है




ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है
मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है

ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ
जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार
 मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है







❤❤❤खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े
सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े

देख मे’मार परिंदे भी रहें घर भी बनेनक़्शा 
ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न पड़े

मेरे होंटों पे किसी लम्स की ख़्वाहिश है 
शदीद ऐसा कुछ कर मुझे सिगरेट को जलाना न पड़े

इस तअल्लुक़ से निकलने का कोई रास्ता दे
इस पहाड़ी पे भी बारूद लगाना न पड़े

नम की तर्सील से आँखों की हरारत कम 
होसर्द-ख़ानों में कोई ख़्वाब पुराना न पड़े

रब्त की ख़ैर है बस तेरी अना बच जाए
इस तरह जा कि तुझे लौट के आना न पड़े

हिज्र ऐसा हो कि चेहरे पे नज़र आ जाए
ज़ख़्म ऐसा हो कि दिख जाए दिखाना न पड़े




❤❤❤जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बने
गाये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ’राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से
 क़ब्लमिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए’तिराज़ कैसा शदीद नम 
ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ’ रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपनासदा के
वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ’ से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो 
शो’बदा-बाज़पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा




❤❤❤मुझे पेहले पहल लगता था ज्याती मसला है
मै फिर समझा मोहब्बत कानायती मसला है

परिंदे कैद है तुम चहचहाट चाहते हो
तुम्हे तो अच्छा खासा नफसियाती मसला है

हमे पूरा जुनून दरकार है उस पर सुकून भी
हमारी नस्ल मे इक जीनियाती मसला है



❤❤❤एक तारीखे मुकर्र पर तू हर माह मिले
जैसे दफ्तर मे किसी शख्स को तनखाह मिले

रंग उखड़ जाये तो जाहिर हो प्लसतर की नमी
कहकहा खोद के देखो तो तुम्हे आह मिले

जमा थे रात मेरे घर तेरे ठुकराये हुये
एक दरगाह पे सब रांदाये दरगाह मिले

मै तो एक आम सिपाही था हिफाजत के लिये
शाहजादी ये तेरा हक था तुझे शाह मिले

एक मुलाकात के टलने की खबर ऐसे लगी
जैसे मजदूर को हड़ताल की अफवाह मिले




❤❤❤नकाब उड़ा तो मुझे सुर्ख लब दिखाई दिये
वो दो दिये जो हवा के सबब दिखाई दिये

मै जुस्बी अंधा था दो चार रंग दिखते थे
मगर जब उसने कहा देख सब दिखाई दिये

किसी के साथ किसी बाग मे टहलते हुये
तमाम फूल बहुत बाअदब दिखाई दिये





❤❤❤बरसो पुराना दोस्त मिला,जैसे गैर हो
देखा,रुका,झिझक के कहा तुम उमैर हो?

मिलते है मुश्किलो से यहाँ हम ख्याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालो की खैर हो

हम मुतमईन बहुत है अगर खुश नही भी है
तुम खुश हो क्या हुआ जो हमारे बगैर हो

कमरे मे सिगरेटो का धुंआ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बागो की सैर हो

पैरो मे उसके सर को धरे इल्तिजा करे
इक इल्तिजा के जिसका ना सर हो ना पैर हो



❤❤❤झुक के चलता हुँ के कद उसके बराबर ना लगे
दूसरा ये के उसे राह मे ठोकर ना लगे

ये तेरे साथ ताल्लुक का बड़ा फायदा है
आदमी हो भी तो औकात से बाहर ना लगे

नीम तारीक सा माहोल दरकार है मुझे
ऐसा माहोल जहाँ आँख लगे डर ना लगे

माँओ ने चुमना होते है बुरीदा सर भी
उनसे कहना के कोई जख्म जबीं पर ना लगे

तुमने छोड़ा तो किसी और से टकराऊंगा मै
कैसे मुमकिन है के अंधे का कही सर ना लगे




❤❤❤बस एक उसी पे तो पूरी तरह अयाँ हुँ मै
वो कह रहा है मुझे रायगाँ तो हाँ हुँ मै

जिसे दिखाई दू मेरे तरफ इशारा करे
मुझे दिखाई नही दे रहा कहा हुँ मै
किसी ने पूछा कि तुम कौन हो?



❤❤❤तो भूल गया अभी किसी ने बताया तो था कि फलां हुँ मै
मै खुद को तुझ से मिटाऊँगा एहतियात के साथ
तू बस निशान लगा दे जहाँ जहाँ हुँ मै
मै किससे पूछू ये रस्ता दुरुस्त है के गलत?
जहाँ से कोई गुजरता नही वहाँ हुँ मै



❤❤❤इस खराबे मे कुछ आगे वो जगह आती है
जहा ख्वाव भी टूटे तो सदा आती है

मैने जिंदान मे सीखा था असीरो से ऐ किस्म
जिसको दीवार पे फूंके तो हवा आती है

उसको पर्दे का तरद्दुद नही करना पड़ता
ऐसा चेहरा है के देखे तो हया आती है



❤❤❤जहान भर की तमाम आँखे निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिलाकर भी हिज्र की रात मेरे गिरिये से कम बनेगा

हमारा लाशा बहाव वरना लहद मुकद्दस मजार होगी
ये सुर्ख कुर्ता जलाओ वरना बगावतो का अलम बनेगा

मै तरतीब से लगाता रहा हुँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक्फे निकाल इसको शुरु से सुन रिदम बनेगा

सुफेद रुमाल जब कबूतर नही बना तो वो शोब्दाबाज
पलटने वालो से कह रहा था रुको खुदा की कसम बनेगा


❤❤❤मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया
जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया

सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है
वही हुआ मिरा बदन कमान बन गया

मुहीब चुप में आहटों का वाहिमा हवा
मैं सर से पाँव तक तमाम कान बन गया

हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा
जिधर थीं खिड़कियाँ उधर मकान बन गया

शुरूअ' दिन से घर मैं सुन रहा था इस लिए
सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया

और एक दिन खिंची हुई लकीर मिट गई
गुमाँ यक़ीं बना यक़ीं गुमान बन गया

कई ख़फ़ीफ़ ग़म मिले मलाल बन गए
ज़रा ज़रा सी कतरनों से थान बन गया

मिरे बड़ों ने आदतन चुना था एक दश्त
वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया



तो दोस्तों कैसा लगा आपको आज का यह ब्लॉग 
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 कमेंट सेक्शन में कमेंट करके अवश्य बता दें 
साथ ही अगर आप इस ब्लॉग के बारे में 
कोई मशवरा देना चाहते हैं तो यह आपकी मेहरबानी होगी 
और मैं ब्लॉक में नए सुधार करने की कोशिश करूंगा
 तो मिलते हैं एक नए दिन एक मशहूर शायर के साथ 
तब तक के लिए आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार


आपका दोस्त
प्रमोद मेघ






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