Best 10+ shayari of mirza galib in hindi मिर्ज़ा गालिब की बेहतरीन चुनिंदा शायरी mirza galib shayari in hindi

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Best 10+ shayari of mirza galib in hindi मिर्ज़ा गालिब की बेहतरीन चुनिंदा  शायरी mirza galib shayari in hindi

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अगर हम यूं कहें कि इश्क मिर्ज़ा गालिब से शुरू होता है तो यह कोई अतिशयोक्ति नही होगी। उनका हर अल्फ़ाज़ बहुत ही असरदार है । उनका हर शेर एक जिंदादिल आशिक की तरह इश्क की रस्मों को निभाता है। उनके कुछ ऐसे दमदार शेर हम आपके लिए इस ब्लॉग मे लेकर आये हैं।


   ❤1-इम्तहाँ...
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो

Yahi hai aazmana to satana kisko kahte hai
Adu ke ho liye jab tum to mera imthan kyon ho




❤2-हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
 दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

Hamko maloom hai janat ki haqiqat lekin
Dil ke khush rakhne ko galib ye khyal achha hai



❤3-रौनक...
उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है

Unko dekhe se jo aa jati hai munh pe ronak
Wo samjhate hai ke beemar ka haal achha hai

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❤4-इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे

Ishq par jor nahi ye wo aatisha hai galib
Ki lagaye na lage aur bujhaye na bujhe
सहर...
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता

Tere wade pe jiye ham to yah jaan jhooth jana
Ki khushi se mar n jate agar aitbaar hota



❤4-तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

Tum n aaye to kya sahar na hui
Haa magar chain se basar na hui
Mera nala sun ajamane ne
Ek tum ho jise khabar na hui
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❤5-ख़ुदा...
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!

N tha kuchh to khuda tha khuchh n hota to khuda hota
Duboya mujhko hone ne n mai hota to kya hota
Hua jab gam se yu behish to gam kya sar ke katne ka
Na hota gar juda tan se to jahanu par dhara hota

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❤6-याद...
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !

Hui muddat ki galib mar gaya par yaad aata hai
Wo har ek baat pe kahna ki yu hota to kya hota

 
❤7-गुफ़्तगू... Guftgu
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है


न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है
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❤8-रश्क...
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है


चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
जुस्तजू...
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
अज़ीज़...
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
उम्मीद...
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है
❤8-दीवार...
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं

Ye ham jo hijr me diwar o dar ko dekhte hai
Kabhi saba ko kabhi naamabar ko dekhte hai
Wo aaye ghar me hamare khuda ki kudrat
Kabhi ham unko kabhi apne ghar ko dekhte hai
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❤9-ज़ख़्मे जिगर...
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं

तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं
Nazar na lage kahin dast o bajoo ko
Ye log kyun mere jakhme jigar ko dekhte hai
Tere jawahire tarfe kul ko kya dekhe
Ham auje ta ale lal o guhar ko dekhte hai



पूरी ग़ज़ल ...🥀

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक

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धन्यवाद 
आपका दोस्त
प्रमोद मेघ


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