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नमस्कार दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम आपको बताने जा रहे हैं उर्दू के एक महान शख्सियत उर्दू के एक महान लेखक और कविता के रचयिता जिन्होंने बहुत ही शानदार बेमिसाल कविताएं की और उर्दू का नाम रोशन भारत के अंदर किया या यूं कहें कि भारत के अंदर लोगों का उर्दू के प्रति रुचि इनकी कविताओं के बाद ही पैदा हुआ


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इसके साथ ही इस ब्लॉग में आपको नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर भी मिलेगा इस ब्लॉग में आपको सबसे पहले बताएंगे कि हजरत अमीर खुसरो कौन थे उनके गुरु कौन थे उसके बाद में उनकी कुछ रचनाओं को बताएंगे साथ ही उनकी रचनाएं इस ब्लॉग में हिंदी में अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है जिससे कि सभी को उन्हें पढ़ने में आसानी होगी ऐसा मेरा मानना है तो अगर ब्लॉक पसंद आए तो ब्लॉक को फॉलो कर ले तथा अगर आपको किसी प्रकार का ब्लॉग के अंदर कमी या संशोधन की आवश्यकता लगे तो कमेंट सेक्शन के अंदर हमें जरूर बता दें साथ ही अगर आप पहली बार ब्लॉक देख रहे हैं तो इस आईडी को फॉलो कर लें और सहयोग के लिए ज्यादा से ज्यादा अपने मित्रों में इसे शेयर करें इसके लिए मैं आपका आभारी रहूंगा




अमीर खुसरो की 20+ बेहतरीन कविताएं गजलें पर शायरियां

अमीर खुसरो की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी हैं?

अमीर खुसरो कौन थे आमिर खुसरो के कुछ काम बताइए

दो सुखने किसकी रचना है?

ख्वाजा इन उल्फत तू किसकी रचना है?






अमीर खुसरो कौन था ?


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खुसरो दरिया प्रेम का शब्द आते ही हर किसी के जेहन में एक नाम उभरता है हजरत अमीर खुसरो जो उर्दू के ऐसे लेखक थे जिन्हें उर्दू के बेहतरीन लेखकों साथ ही उर्दू के शुरुआती लेखकों में गिना जाता है भारत के अंदर पढ़े जाने वाले उर्दू कलामो की शुरुआत हजरत अमीर खुसरो से ही मानी जाती है
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आज हम आपको तेरहवीं-चौदहवीं सदी (संवत १२५३ ई./६५३ हिज्री से सन १३२५ ई./७२५ हिज्री तक) के हिन्दुस्तान की उस रंगारंग हुनरमंद, शानदार अजीम शख्सियत और अमर हस्ती से मिलवाएँगे जिसने बरबादी और आबादी, तबाही और तामीर (निर्माण करना), जंग और अमन तथा दुख और सुख के बीच निडरता एवं अपने बुद्धि कौशल से एक बेहतरीन ज़िदगी के बहत्तर साल गुज़ारे।


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यह वह प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय शख़िसयत हैं - तूती-ए-हिंद यानी हज़रत अमीर खुसरो दहलवी। इनका वास्तविक अर्थात बचपन का नाम था - अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद। यह नाम इनके पिता ने इन्हें दिया था जो बहुत ही निडर सिपहसालार एवं योद्धा थे। अमीर खुसरो को बचपन से ही कविता करने का शौक़ था। इनकी काव्य प्रतिभा की चकाचौंध में, इनका बचपन का नाम अबुल हसन बिल्कुल ही विस्मृत हो कर रह गया। अमीर खुसरो दहलवी ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल कपट की उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया।

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प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ 'तारीखे-फिरोज शाही' में स्पष्ट रुप से लिखा है कि बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने अमीर खुसरो की एक चुलबुली फ़ारसी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें 'अमीर' का ख़िताब दिया था जो उन दिनों बहुत ही इज़ज़त की बात थी। उन दिनों अमीर का ख़िताब पाने वालों का एक अपना ही अलग रुतबा व शान होती थी।



अमीर खुसरो दहलवी का जन्म उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक ग्राम में गंगा किनारे हुआ था। गाँव पटियाली उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था। इस गाँव में अमीर खुसरो के जन्म की बात हुमायूँ काल के हामिद बिन फ़जलुल्लाह जमाली ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ 'तज़किरा सैरुल आरफीन' में सबसे पहले कही। तेरहवीं शताब्दी के आरंभ में दिल्ली का राजसिंहासन गुलाम वंश के सुल्तानों के अधीन हो रहा था। उसी समय अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद (मुहम्मद) तुर्किस्तान में लाचीन कबीले के सरदार थे। कुछ लोग इसे बलख हजारा अफ़गानिस्तान भी मानते हैं। चंगेज खाँ के इस दौर में मुगलों के अत्याचार से तंग आकर ये भारत आए थे। कुछ लोग ऐसी भी मानते हैं कि ये कुश नामक शहर से आए थे जो अब शर-ए-सब्ज के नाम से जाना जाता है। ये वस्ते एशिया के तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान देशों की सीमा पर स्थित है। उस समय भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१० ई.) का देहांत हो चुका था और उसके स्थान पर उसका एक दास शम्शुद्दीन अल्तमश (१२११-१२३६ ई.) राज्य करता था। अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन अपने लाचीन वालों के साथ पहले लाहौर और फिर दिल्ली (देहली) पहुँचे। यहाँ सौभाग्य से शम्शुद्दीन अल्तमश के दरबार में उनकी पहुँच जल्दी हो गयी। अपने सैनिक गुणों के कारण वे दरबार में फ़ौजी पद पर सरदार बन गए। शम्शुद्दीन अल्तमश के पश्चात शरीफ और अम्न पंसद बादशाह नासिरुद्दीन महमूद ने इन्हें नौकरी दी। गुलाम खानदाने शाही के एक ज़बरदस्त और दबदबे वाले तख्तनशीं बलबन ने अमीर को औहदा और पटियाली जिला एटा में गंगा किनारे जागीर दी।


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अमीर खुसरो की माँ दौलत नाज़ हिन्दू (राजपूत) थीं। ये दिल्ली के एक रईस अमीर एमादुल्मुल्क की पुत्री थीं। ये बादशाह बलबन के युद्ध मंत्री थे। ये राजनीतिक दवाब के कारण नए-नए मुसलमान बने थे। इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बावजूद इनके घर में सारे रीति-रिवाज हिन्दुओं के थे। खुसरो के ननिहाल में गाने-बजाने और संगीत का माहौल था। खुसरो के नाना को पान खाने का बेहद शौक था। इस पर बाद में खुसरो ने 'तम्बोला' नामक एक मसनवी भी लिखी। इस मिले जुले घराने एवं दो परम्पराओं के मेल का असर किशोर खुसरो पर पड़ा। जब खुसरो पैदा हुए थे तब इनके पिता इन्हें एक कपड़े में लपेट कर एक सूफ़ी दरवेश के पास ले गए थे। दरवेश ने नन्हे खुसरो के मासूम और तेजयुक्त चेहरे के देखते ही तत्काल भविष्यवाणी की थी - "आवरदी कसे राके दो कदम। अज़ खाकानी पेश ख्वाहिद बूद।" अर्थात तुम मेरे पास एक ऐसे होनहार बच्चे को लाए हो खाकानी नामक विश्व प्रसिद्ध विद्वान से भी दो कदम आगे निकलेगा। चार वर्ष की अल्प आयु में ही खुसरो अपने पिता के साथ दिल्ली आए और आठ वर्ष की अवस्था तक अपने पिता और भाइयों से शिक्षा पाते रहे। अमीर खुसरो के पहले भाई एज्जुद्दीन (अजीउद्दीन) (इजजुद्दीन) अली शाह (अरबी-फारसी विद्वान) थे। दूसरे भाई हिसामुद्दीन कुतलग अहमद (सैनिक) थे। तीन भाइयों में अमीर खुसरो सबसे अधिक तीव्र बुद्धि वाले थे। अपने ग्रंथ गुर्रतल कमाल की भूमिका में अमीर खुसरो ने अपने पिता को उम्मी अर्थात् अनपढ़ कहा है। लेकिन अमीर सैफुद्दीन ने अपने सुपुत्र अमीर खुसरो की शिक्षा-दीक्षा का बहुत ही अच्छा (नायाब) प्रबंध किया था। अमीर खुसरो की प्राथमिक शिक्षा एक मकतब (मदरसा) में हुई। वे छ: बरस की उम्र से ही मदरसा जाने लगे थे। स्वयं खुसरो के कथनानुसार जब उन्होंने होश सम्भाला तो उनके वालिद ने उन्हें एक मकतब में बिठाया और खुशनवीसी की महका के लिए काजी असुदुद्दीन मुहम्मद (या सादुद्दीन) के सुपुर्द किया। उन दिनों सुन्दर लेखन पर काफी बल दिया जाता था। अमीर खुसरो का लेखन बेहद ही सुन्दर था। खुसरो ने अपने फ़ारसी दीवान तुहफतुसिग्र (छोटी उम्र का तोहफ़ा - ६७१ हिज्री, सन १२७१, १६-१९ वर्ष की आयु) में स्वंय इस बात का ज़िक्र किया है कि उनकी गहन साहित्यिक अभिरुचि और काव्य प्रतिभा देखकर उनके गुरु सादुद्दीन या असदुद्दीन मुहम्मद उन्हें अपने साथ नायब कोतवाल के पास ले गए। वहाँ एक अन्य महान विद्वान ख़वाजा इज्जुद्दीन (अज़ीज़) बैठे थे। गुरु ने इनकी काव्य संगीत प्रतिभा तथा मधुर संगतीमयी वाणी की अत्यंत तारीफ की और खुसरो का इम्तहान लेने को कहा। ख्वाजा साहब ने तब अमीर खुसरो से कहा कि 'मू' (बाल), 'बैज' (अंडा), 'तीर' और 'खरपुजा' (खरबूजा) - इन चार बेजोड़, बेमेल और बेतरतीब चीज़ों को एक अशआर में इस्तमाल करो। खुसरो ने फौरन इन शब्दों को सार्थकता के साथ जोड़कर फारसी में एक सद्य:: रचित कविता सुनाई -

'हर मूये कि दर दो जुल्फ़ आँ सनम अस्त,
सद बैज-ए-अम्बरी बर आँ मूये जम अस्त,
चूँ तीर मदाँ रास्त दिलशरा जीरा,
चूँ खरपुजा ददांश मियाने शिकम् अस्त।'

अर्थातः उस प्रियतम के बालों में जो तार हैं उनमें से हर एक तार में अम्बर मछली जैसी सुगन्ध वाले सौ-सौ अंडे पिरोए हुए हैं। उस सुन्दरी के हृदय को तीर जैसा सीधा-सादा मत समझो व जानो क्योंकि उसके भीतर खरबूजे जैसे चुभनेवाले दाँत भी मौजूद हैं।



अमीर खुसरो के गुरु

अमीर खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया एक सूफी संत थे जोकि सूफी मत का प्रचार करने के लिए भारत में आए थे उनकी याद में ही राजस्थान के अजमेर में उनकी दरगाह बनी हुई है जो काफी मशहूर दरगाह है जिसे भारत का मक्का भी कहा जाता है
इस सूफी दरगाह पर हिंदू मुस्लिम एक साथ सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करते हैं

अब आईये पढ़ते है उनकी कई विशेष रचनाएँ

अमीर खुसरो की कविताएँ

Ameer khusro poetry

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अमीर खुसरो की  लोकप्रिय अवधी कवितायें




❤1-खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग

Khusro rain suhag ki jagi pee ke sang
Tan mera man peev ka dono bhaye ek hi rang


❤2-खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार

Khusro dariya prem ka ulti wa ki dhar
Jo utra so doob gaya jo dooba so paar
    
❤3-खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा
   
Kheer pakai jatan se charkha diya jala
Aaya kutta kha gaya ti baithi dhol baja


❤-गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस

Gauri sove sej par mukh par dare kesh
Chal khusro ghar aapne sanjh bhayi vhahun desh



❤5-खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहिं होत सहाय

Khusro maula ke ruthte peer ke sarne jai
Kahe khusro peer ke ruthte maula nahi hot sahai

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❤6-खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग,
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।

khusaro baajee prem kee main kheloon pee ke sang,
jeet gayee to piya more haaree pee ke sang.

 


❤7-साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन,

दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।


saajan ye mat jaaniyo tohe bichhadat mohe ko chain,

diya jalat hai raat mein aur jiya jalat bin rain.


❤8-अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस,

जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।


angana to parabat bhayo, deharee bhee vides,

ja baabul ghar aapane, main chalee piya ke des.


❤9-रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन,

तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।


rain bina jag dukhee aur dukhee chandr bin rain,

tum bin saajan main dukhee aur dukhee daras bin nainn.


❤10-आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ,

न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दू

aa saajan more nayanan mein, so palak dhaap tohe doon,

na main dekhoon aur na ko, na tohe dekhan doon,


❤11-खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग,

जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।


khusaro baajee prem kee main kheloon pee ke sang,

jeet gayee to piya more haaree pee ke sang.


❤12-अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई,

जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।


apanee chhavi banaee ke main to pee ke paas gaee,

jab chhavi dekhee peehoo kee so apanee bhool gaee.

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❤13-खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय,

वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।


khusaro paatee prem kee birala baanche koy,

ved, kuraan, pothee padhe, prem bina ka hoy.


❤14-चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय,

ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।


chakava chakavee do jane in mat maaro koy,

ye maare karataar ke rain bichhoya hoy.


❤15संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत,

वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।


santon kee ninda kare, rakhe par naaree se het,

ve nar aise jaainge, jaise ranarehee ka khet.


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❤16-खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन,

कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।


khusaro sareer saraay hai kyon sove sukh chain,

kooch nagaara saans ka, baajat hai din rain.


❤17-खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय,

पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।


khusaro aisee peet kar jaise hindoo joy,

poot parae kaarane jal jal koyala hoy.


❤18-खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन,

कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।


khusaro sareer saraay hai kyon sove sukh chain,

kooch nagaara saans ka, baajat hai din rain.


❤19-खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश,

कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।


khusarava dar ishk baajee kam ji hindoo jan maabaash,

kaz barae murda ma sozad jaan-e-khes ra.


❤20-रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन,

तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।


rain bina jag dukhee aur dukhee chandr bin rain,

tum bin saajan main dukhee aur dukhee daras bin nainn.


❤21-श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत,

एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।


shyaam set goree lie janamat bhee aneet,

ek pal mein phir jaat hai jogee kaake meet.


❤22-नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय,

पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।


nadee kinaare main khadee so paanee jhilamil hoy,

pee goree main saanvaree ab kis vidh milana hoy.

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❤23-रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ,

जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।


rainee chadhee rasool kee so rang maula ke haath,

jisake kapare rang die so dhan dhan vaake bhaag



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आपका अपना दोस्त

प्रमोद मेघ









 





 


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